हाय वो रुत भी क्या सुहानी थी।
मैं भी सुनता था तू भी सुनती थी॥
मैं भी सुनता था तू भी सुनती थी॥
तू मेरे सड़्ग-सड़्ग बरसों-बरस।
जंगलों-जंगलों भटकती थी॥
जंगलों-जंगलों भटकती थी॥
क्यों न सुन्दर हों मेरी तसवीरें।
रंग तू ही तो इन में भरती थी॥
रंग तू ही तो इन में भरती थी॥
कुछ सबक तूने भी सिखाये हैं।
तू भी लड़ती थी तू भी जिद्दी थी॥
तू भी लड़ती थी तू भी जिद्दी थी॥
कैसे कह दूँ कि तब ज़हीन था मैं।
जब तू मेरी कनीज़ होती थी॥
जब तू मेरी कनीज़ होती थी॥
मैं जो सहरा था बन गया दरिया।
तू फ़ना हो गयी जो नद्दी थी॥
तू फ़ना हो गयी जो नद्दी थी॥
मैं तो हमले में मारा जाता था।
जीते जी तू चिता पे सोती थी॥
जीते जी तू चिता पे सोती थी॥
खेत-खलिहान जानते थे उसे।
जिस के दम से रसोई चलती थी॥
जिस के दम से रसोई चलती थी॥
भूल जाती थी तू तेरे अरमान।
जब तबीयत मेरी मचलती थी॥
जब तबीयत मेरी मचलती थी॥
अपने अब्बा की लाज रखने को।
उन की हर बात मान लेती थी॥
उन की हर बात मान लेती थी॥
अपने भाई की फीस की ख़ातिर।
अपना पढना ही छोड़ देती थी॥
अपना पढना ही छोड़ देती थी॥
माँ की आँखें न भीग जाएँ कहीं।
इस लिये हर सितम को सहती थी॥
इस लिये हर सितम को सहती थी॥
मेरे जैसों से डर के तू अक्सर।
घर से बाहर नहीं निकलती थी॥
घर से बाहर नहीं निकलती थी॥
वो तो मैं ने ही तुझ को रोक लिया।
वरना तू ने उड़ान भरनी थी॥
वरना तू ने उड़ान भरनी थी॥
चल क़लम हाथ में उठा ले अब।
वो क़लम जिस को तू बनाती थी॥
वो क़लम जिस को तू बनाती थी॥
मत ज़माने से पूछ कोई सवाल।
ये रियाया तो कल भी गूँगी थी॥
ये रियाया तो कल भी गूँगी थी॥
टोकने वालों को बता देना।
उन की अम्मा भी एक लड़की थी॥
उन की अम्मा भी एक लड़की थी॥
बोलना दौर अब नहीं है वो।
जब कि तू घर में क़ैद रहती थी॥
जब कि तू घर में क़ैद रहती थी॥
काश मर्दों को यह समझ आये।
उन की अम्मा भी एक लड़की थी॥
उन की अम्मा भी एक लड़की थी॥
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