संसार में कोई भी हो सब को रवानी चाहिये।
पानी को धरती चाहिये धरती को पानी चाहिये॥
इज़्ज़त कमानी चाहिये इज़्ज़त बचानी चाहिये।
नज़रों में उठने के लिये नज़रें झुकानी चाहिये॥
ऐ जाने वाले तू कोई तस्वीर देता जा हमें ।
सब कुछ भुलाने के लिए कुछ तो निशानी चाहिये॥
बेशक़ ये ऐसा बाग़ है जिस का कोई सानी नहीं।
लेकिन हुज़ूर अब इस चमन को बाग़वानी चाहिये॥
उस पीर को परबत हुए काफ़ी ज़माना हो गया।
उस पीर को अब नई-नवेली तर्जुमानी चाहिये॥
हम जीतने के ख़्वाब आँखों में सजायें किस तरह।
लश्कर को राजा चाहिए राजा को रानी चाहिये॥
कुछ भी नहीं ऐसा कि जो उसने हमें बख़्शा नहीं।
हाजिर है सब कुछ सामने बस बुद्धिमानी चाहिये॥
लाजिम है ढूँढें और फिर बरतें सलीक़े से उन्हें।
हर लफ्ज़ को हर दौर में अपनी कहानी चाहिये॥
इस दौर के बच्चे नवाबों से ज़रा भी कम नहीं।
इक पीकदानी इन के हाथों में थमानी चाहिये॥
हर बाप के दिल का यही अरमान होता है 'नवीन'।
ससुराल में भी उस की लाड़ो मुस्कुरानी चाहिये॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें