न तो अनपढ़ ही रहा और न ही क़ाबिल
हुआ मैं।
ख़ामखा इश्क़ इसकूल में दाख़िल
हुआ मैं॥
मेरे मरते ही ज़माने का लहू खौल
उठ्ठा।
ख़ामुशी ओढ़ के आवाज़ में शामिल
हुआ मैं॥
ओस की बूँदें मेरे चारों तरफ़
जम्अ हुईं।
देखते-देखते दरिया के मुक़ाबिल
हुआ मैं॥
अब भी तक़दीर की जद1 पर है मेरा
मुस्तक़बिल2।
कौन से मुँह से कहूँ कब्ल3 से
क़ाबिल हुआ मैं॥
अपने अन्दर से उबरते ही मिला
सन्नाटा।
घर से निकला तो बियाबान में दाख़िल
हुआ मैं॥
1 निशाने पर 2 भविष्य 3 गुज़रा
हुआ कल
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