हवा के साथ उड़ कर भी मिला क्या

हवा के साथ उड़ कर भी मिला क्या।
किसी तिनके से आलम सर हुआ क्या॥ 

बहुत फ़ौलाद था इन बाजुओं में। 


मगर अब तौलने से फ़ायदा क्या॥

धुएँ से अट रही है आदमीयत। 
अक़ीदों में पलीता लग गया क्या॥

ये अहसाँ है ज़मीं का आसमाँ पर। 
वगरना कोई क़तरा लौटता क्या॥

मेरे ही सामने बिगड़ा है सबकुछ। 
युगों से मैं फ़क़त सोता रहा क्या॥

अँधेरे यूँ ही तो घिरते नहीं हैं।
उजालों ने किनारा कर लिया क्या॥

डरा-धमका के बदलोगे हमें तुम।
अमाँ! तुमने धतूरा खा लिया क्या॥

बड़े उम्दा क़सीदे पढ़ रहे हो।
वजीफ़े में इजाफ़ा हो गया क्या॥

फ़लक पर थोड़ा सा हक़ मेरा भी है।
परिंदों को ही उड़ते देखता क्या॥











  

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