नहीं नहीं ये नहीं कि हम उस का दर भूल गये

नहीं नहीं ये नहीं कि हम उस का दर भूल गये।
सच तो ये है साहब हम अपना घर भूल गये॥

उस पनिहारिन की अँखियों ने यूँ मदहोश किया।
पैराहन तो ले आये हैं पैकर भूल गये॥

यार उसे खोने की हिम्मत हम में है ही नहीं।
किसे भुलाना है ये भी हम अक्सर भूल गये॥

उसने कुछ बोला तो था जाने क्या बोला था।
लबों की लग्जिश याद है केवल, आखर भूल गये॥

उन ही के दम से तो मरीज़ मरज़ पै हावी है।
कैसे कहें उस की बातों के नश्तर भूल गये॥

बेदम और उदास भी थे पर फ़लक तेरी ख़ातिर।
आन पड़ा तो हम अपने बालोपर भूल गये॥

और भला किस की हिम्मत वो तो है हमारा दिल।
भूलने वाले हम को जिस की शह पर भूल गये॥

जितने शेर सुना कर ख़ुद को शायर समझे हम।
उतने शेर तो कहने वाले कह कर भूल गये॥

आप की दुश्वारी का इतना सा कारन है ‘नवीन’।
आप को रहजन याद रहे बस – रहबर भूल गये॥

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