थे ख़ुद ही के हिसार में ।
सो लुट गये बहार में ।।
क्या आप भी ज़हीन थे ।
आ जाइये क़तार में ।।
नश्शा उतर गया तमाम ।
कुछ बात है उतार में ।।
गर तुम नहीं तो ग़म मिला ।
इतने नहीं हैं मार में ।।
लाखों में आप एक थे ।
अब भी हैं इक हज़ार में ।।
ये दिन भी देख ही लिया ।
पानी नहीं कछार में ।।
सारा शरीर खुल गया ।
झरने की एक धार में ।।
आवाज़ दीजिये किसे ।
इस रात के बुखार में ।।
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