गाँव
से चौपाल, बातों से हँसी गुम हो गयी।
सादगी, संज़ीदगी, ज़िंदादिली
गुम हो गयी॥
*
देख
लो साहब जो बोला था वो साबित हो गया।
क़र्ज़-क़िस्तों
में उलझ कर सैलरी गुम हो गयी॥
*
चौधराहट
के सहारे ज़िंदगी चलती नहीं।
देख
लो इंग्लैण्ड की भी हेकड़ी गुम हो गयी॥
*
कंस-कारागार
के क़िस्सों में जिस का ज़िक्र है।
द्वारिका
की भीड़ में वह देवकी गुम हो गयी॥
*
आज़
भी ‘इक़बाल’ का ‘सारे जहाँ’ मशहूर है।
कौन
कहता है जहाँ से शायरी गुम हो गयी॥
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