गाँव से चौपाल, बातों से हँसी गुम हो गयी

गाँव से चौपाल, बातों से हँसी गुम हो गयी।
सादगी, संज़ीदगी, ज़िंदादिली गुम हो गयी॥
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देख लो साहब जो बोला था वो साबित हो गया।
क़र्ज़-क़िस्तों में उलझ कर सैलरी गुम हो गयी॥
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चौधराहट के सहारे ज़िंदगी चलती नहीं।
देख लो इंग्लैण्ड की भी हेकड़ी गुम हो गयी॥
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कंस-कारागार के क़िस्सों में जिस का ज़िक्र है।
द्वारिका की भीड़ में वह देवकी गुम हो गयी॥
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आज़ भी ‘इक़बाल’ का ‘सारे जहाँ’ मशहूर है।
कौन कहता है जहाँ से शायरी गुम हो गयी॥

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