आसमाँ तेरी ख़लाओं से गुज़र मेरा भी है

आसमाँ तेरी ख़लाओं से गुज़र मेरा भी है।
रौशनी जैसा फ़साना दर-ब-दर मेरा भी है॥

मैं नहीं उड़ता तो क्या? ख़ाहिश तो उड़ती है मेरी।
हर परिन्दे में जड़ा एकाध पर मेरा भी है॥

कोई भी रस्ता नहीं बनता है पत्थर के बग़ैर।
मख़मली राहों में तेरी कुछ हुनर मेरा भी है॥

हूँ भले आबो-हवा, लेकिन सँभालूँगा उसे।
ज़ुल्मतों से जूझने वाला शरर मेरा भी है॥

मुझ से मेरे अपनों को अब और कुछ ख़ाहिश नहीं।
सिर्फ़ इतना भूल जाऊँ मालो-ज़र मेरा भी है॥

या तो जन्नत खोल दे, या फिर ज़मीं को भूल जा।
तू ही तो मालिक नहीं रुतबा इधर मेरा भी है॥

किसलिये रोऊँ उसे और क्यूँ उसे इल्ज़ाम दूँ।
ख़ुद-ब-ख़ुद लौट आयेगा गिरिधर अगर मेरा भी है॥

नूर के रुतबे को यूँ तो कौन पहुँचेगा ‘नवीन’।
हाँ मगर अंदाज़ थोड़ा कारगर मेरा भी है॥

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