सूरते-ग़म सँवरने लगी है।
ख़ामुशी बात करने लगी है॥
जब भी आते हैं दिल तोड़ते हैं।
नींद सपनों से डरने लगी है॥
तोड़ देती है रोज़ एक वादा।
मौत भी अब मुकरने लगी है॥
कोई कैसे टिके आसमाँ पर।
रौशनी पर कतरने लगी है॥
अब उभर आयेगी उन की सूरत।
बेकली रंग भरने लगी है॥
आ रहा है कोई हम से मिलने।
ये ख़बर तंग करने लगी है॥
भोर होने ही को है 'नवीन' अब।
ओस अँखियों से झरने लगी है॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें