जो हम भी दाँव पै अपनी अना लगा देते।
यक़ीन जानो कि एक सल्तनत गँवा देते॥
ख़ुदा का शुक्र है सूरज नहीं हैं हम, वरना।
न जाने कितने परिन्दों के पर जला देते॥
सभी के साथ रहे, ग़म मिला, ख़ुशी
बाँटी।
अगर अकेले ही रहते तो सब को क्या देते॥
हमें मिटाने की तरक़ीब कौन मुश्किल थी।
क़लम से लिख के रबर से
हमें मिटा देते॥
कहा तो होता कि तुम धूप से परेशाँ हो।
हम अपने आप को दुपहर में ही डुबा देते॥
यहाँ उजालों ने आने से कर दिया था मना।
वगरना किसलिये शोलों को हम हवा देते॥
तुम्हारे वासते रसते बुहारने थे 'नवीन'।
तुम आना चाहते हो इतना ही बता देते॥
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