शम्म कुछ पल झिलमिलायी झिलमिला
कर बुझ गयी ।
ज़िन्दगानी मुस्कुरायी मुस्कुरा
कर बुझ गयी ॥
हम ने भी चाहा कि दुनिया को बदल
देंगे मगर।
इक तमन्ना थी जो दिल में लौ लगा
कर बुझ गयी॥
माँ तुम्हारी शान में गर यह नहीं
तो क्या कहें।
एक शख़्सीयत१ हमें जलना सिखा कर
बुझ गयी॥
मुफ़लिसी२ की जोत हाये तूने ये
क्या कर दिया।
क्यों अमीरे-शह्र३ की बातों में
आ कर बुझ गयी॥
हम ने गंगा-घाट पर देखा ये नज़्ज़ारा
'नवीन'।
तेज़-लौ पत्तल के दोने को जला
कर बुझ गयी॥
१ व्यक्तित्व, किरदार २ ग़रीबी ३ नगरसेठ, धन दौलत वाला
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