किसी और में वो लचक न थी किसी और में वो झमक न थी।
जो ठसक थी उस की अदाओं में किसी और में वो ठसक न थी॥
न तो कम पड़ा था मेरा हुनर न तेरा जमाल भी कम पड़ा।
तेरा हुस्न जिस से सँवारता मेरे हाथ में वो धनक न थी॥
फ़क़त इस लिये ही ऐ दोसतो मैं समझ न पाया जूनून को।
मेरे दिल में चाह तो थी मगर मेरी वहशतों में कसक न थी॥
ये चमन ही अपना वुजूद
है इसे छोड़ने की भी सोच मत।
नहीं तो बताएँगे कल को क्या यहाँ गुल न थे कि महक न थी॥
मेरी और उस की उड़ान में कोई मेल है ही नहीं ‘नवीन’।
मुझे हर क़दम पै मलाल था और उसे कोई भी झिझक न थी॥
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