चलो माना बना लेते मगर कैसे बना लेते

चलो माना बना लेते मगर कैसे बना लेते।
हमें लूटे बिना वो अपना घर कैसे बना लेते॥
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हवा हर वक़्त तिनके को उठा कर बह नहीं सकती।
सो वो भी हम को अपना हमसफ़र कैसे बना लेते॥
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हमें तो उम्र भर अपने गुनाहों से उलझना था।
वो अपनी ज़िन्दगानी को खँडर कैसे बना लेते॥
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हमें हर बार हाँ कहने में काफ़ी कोफ़्त होती थी।
तो फिर वो भी हमें नूरे-नज़र कैसे बना लेते॥
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कोई हरकत कोई उलझाव कोई वज़्ह तो बनती।
हम ऐसे ही समुन्दर में भँवर कैसे बना लेते॥

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