तुम्हारी याद के सावन जब आहें
भरते हैं।
हम आँसुओं के हिंडोलों में ऐश
करते हैं॥
हवा सिसकती है अब्रों की ओट में
छुप कर।
तुम्हारे लम्स का जब उस से ज़िक्र
करते हैं॥
जो देखते हैं उन्हें भी बहा के
ले जाएँ।
ग़मों के दरिया इस अन्दाज़ से उतरते
हैं॥
मुहब्बतों का हुनर सब के बस की
बात नहीं।
फिसलनी सत्ह पे कम ही क़दम ठहरते
हैं॥
डगर-डगर पे नगर की बशर-बशर है
उदास।
गुहर बिखरने लगें तो बहुत बिखरते
हैं॥
हिंडोला - एक तरह का झूला, अब्र - बादल, लम्स
- स्पर्श, बशर - मनुष्य, गुहर - मोती
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें