अँधेरा शब-ढले आराम फ़रमाता नहीं है क्यों

अँधेरा शब-ढले आराम फ़रमाता नहीं है क्यों।
मेरी दुनिया में तेरा आफ़ताब आता नहीं है क्यों॥

न जाने कब से तेरी गोद में रक्खा है मेरा सर।
पिता बन कर तू मेरे सर को सहलाता नहीं है क्यों॥

मैं बच्चा हूँ तो जाहिर है बिनटना काम है मेरा।
ये तुझ पर फ़र्ज़ है तू मुझ को बहलाता नहीं है क्यों॥

अरे उलझाने वाले और अब उलझायेगा कितना।
तू अपनी जुल्फों की गुरगाँठ सुलझाता नहीं है क्यों॥

कुसूर उस का है लेकिन आज ये मैं तुझ से पूछूँगा।
वो मेरा भाई मेरे जैसा बन पाता नहीं है क्यों॥

हम आँसू हैं तो आँखों से टपकते क्यों नहीं आख़िर।
हमारा जन्म लेना काम कुछ आता नहीं है क्यों॥

‘नवीन’ उस आसमाँ से इस ज़मीं तक तू ही तू है तो।
मेरे मौला ग़रीबों पर तरस खाता नहीं है क्यों॥

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