बड़ी
सयानी है यार क़िस्मत,
सभी की बज़्में सजा रही है।
किसी
को जलवे दिखा रही है,
कहीं जुनूँ आज़मा रही है॥
अगर
तू बस दास्तान में है,
अगर नहीं कोई रूप तेरा।
तो फिर
फ़लक१ से ज़मीं तलक,
ये धनक२ हमें क्या दिखा रही है॥
सभी
दिलो-जाँ से जिस को चाहें,
उसे भला आरज़ू है किस की।
ये किस
से मिलने की जुस्तजू३ में,
हवा बगूले बना रही है॥
तमाम
दुनिया तमाम रिश्ते,
हमाम४ की दास्तान जैसे।
हयात५
की तिश्नगी६ तो देखो,
नदी किनारों को खा रही है॥
चलो
कि इतनी तो है ग़नीमत,
कि सब ने इस बात को तो माना।
कोई
कला तो है इस ख़ला७ में,
जो हर बला से बचा रही है॥
१ आसमान
२ इन्द्रधनुष ३ तलब,
खोज,
तड़प ४ स्नानघर ५ ज़िन्दगी ६ प्यास, तृष्णा
७ शून्य, संसार
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