हसरतें सुनता है और हुक़्म बजा लाता है

हसरतें सुनता है और हुक़्म बजा लाता है।
बस मेरा दिल ही मेरी बात समझ पाता है ॥

इत्ती सी बात ने खा डाले है लाखों जंगल ।
किसे अल्ला' किसे भगवान कहा जाता है॥

आज भी काफ़ी ख़ज़ाना है ज़मीं के नीचे।
आदमी है कि परेशान हुआ जाता है॥

अच्छे अच्छों पे बकाया है किराया-ए-सराय ।
जो भी आता है, ठहरता है, गुजर जाता है॥

कुछ न कुछ भूल तो हम से भी हुई होगी 'नवीन'
चाँद-सूरज पे गहन यूँ ही नहीं आता है॥

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