वबाले-हयात१ बन ही गयी हमारी
हसद२ हमारे लिये।
हमारे फ़लक३ ने आग उगली हमारे
ख़ुद अपने जिस्म जले॥
एक ऐसा भी दौर गुजरा है जब हवा
को फ़ज़ा४ कुबूल न थी।
पे जिन पे हवा का बस न चला वो
एक रहे जुदा न हुये॥
बचा तो लिया है ख़ुद को मगर ये
टीस दिलों से जाती नहीं।
वो जिन का निशान था न कहीं अब
ऊँची उड़ान भरने लगे॥
बस इतनी सी ज़िद कि घर न लुटें
बस इतनी सी फ़िक्र दिल न दुखें।
कुछ ऐसी धुनों में डूब के हम
लहू से दिये जलाते रहे॥
उमीद के साथ बढ़ते हुये ‘नवीन’
डगर तलाशनी है।
हम उन की तलाश में हैं मगन जो
ख़ुद से नज़र मिला न सके॥
१ ज़िन्दगी का वबाल २ नफ़रत / द्वेष
३ आसमान ४ अच्छा माहौल का अभिप्राय
यह बह्रे-वाफ़र है। जानकारों के
अनुसार इस पर लगभग न के बराबर ही काम हुआ है।
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