फ़ुजूल चुलबुले जुमलों की ओर क्यों ले जाऊँ।

फ़ुजूल चुलबुले जुमलों की ओर क्यों ले जाऊँ।
ग़ज़ल को सिर्फ़ लतीफ़ों की ओर क्यों ले जाऊँ॥

ग़ज़ल की रूह ज़मानों की प्यास ढोती है।
पराई प्यास पियालों की ओर क्यों ले जाऊँ॥

नहीं ये बात नहीं है कि भीड़ से है गुरेज़।
मगर तलाश तमाशों की ओर क्यों ले जाऊँ॥

न जी भरा है सफ़र से न ही थका है बदन।
अभी से नाव किनारों की ओर क्यों ले जाऊँ॥

जिरह के मोड़ कई रासते सुझाते हैं।
अभी से बह्स नतीज़ों की ओर क्यों ले जाऊँ॥

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