हम अपने दर्द को इस तर्ह से भुलाते
हैं।
ख़ुद अपने आप ही अपना मज़ाक़ उड़ाते
हैं॥
ये चोटियाँ हैं रिबन पर कि चोटियों
प रिबन।
किसी को अब भी ख़यालों में हम
चिढ़ाते हैं॥
लिहाफ़ अश्क़ों से तर है मगर ज़ुबाँ
ख़ामोश।
दीवाने आज भी दुनिया से ख़ौफ़ खाते
हैं॥
किसी की याद ने बरबाद कर दिया
होता।
ख़ुदा का शुक्र है लमहे ठहर न
पाते हैं॥
नफ़स१ को जैसे ही छूती हैं गुनगुनी
यादें।
नज़र के दर पे समुन्दर गदर मचाते
हैं॥
जहाँ फ़लक२ से ज़मीं पर अज़ाब३ उतरे
थे।
कुछ एक लम्स४ वहाँ अब भी छटपटाते
हैं॥
हज़ार बार कहा था कि भूल जाओ
'नवीन'।
पर आप सुनते कहाँ हैं - फ़क़त सुनाते
हैं॥
१ साँस २ आसमान ३ मुसीबतें /
यातनाएँ ४ स्पर्श
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