बड़ी
मस्ती से जीता है, दिलों
पे राज करता है।
मसर्रत
बाँटने वाले के दिल में ग़म नहीं होता॥
बुजुर्गों
की नसीहत आज़ भी सौ फ़ीसदी सच है।
मुहब्बत
का ख़ज़ाना बाँटने से कम नहीं होता॥
तुझ
से इतने से चमत्कार की दरख़्वास्त है बस ।
सारे
हैवानों को इंसान बना दे मालिक ॥
आज
ख़ुशबू की हवाओं को ज़ुरूरत है बहुत ।
अपनी
रहमत के गुलाबों को खिला दे मालिक ॥
परबत
बाग़ बगीचे नदियाँ मेरे चारों ओर ।
बिखरी
पड़ी हैं कितनी ख़ुशियाँ मेरे चारों ओर ॥
ब्रज
की गलियों में अक्सर यूँ लगता है जैसे ।
नाच
रही हों कृष्ण की सखियाँ मेरे चारों ओर ॥
आज
के माहौल में भी पारसाई देख ली ।
हम
ने अपने बाप-दादा की कमाई देख ली ॥
जी
हुआ चलिये ज़माने की बुराई देख आएँ ।
आईने
के सामने जा कर बुराई देख ली ॥
कमल, गुलाब, जुही, गुलमुहर बचाते हुये ।
महक
रहे हैं महकते नगर बचाते हुये ॥
ये
खण्डहर नहीं ये तो धनी हैं महलों के ।
बिखर
रहे हैं जो बच्चों के घर बचाते हुये ॥
उठा
के हाथ में खंजर मेरी तलाश न कर ।
अगर
है तू भी सिकन्दर मेरी तलाश न कर ॥
अगर
सुगन्ध की मानिन्द उड़ नहीं सकता ।
तो
घर में बैठ बिरादर मेरी तलाश न कर ॥
कई
दिनों से किसी का कोई ख़याल नहीं ।
अजीब
हाल है फिर भी हमें मलाल नहीं ॥
कई
दिनों से ये जुमला नहीं सुना हमने ।
भले
भुला दे मगर कल्ब (दिल) से निकाल नहीं ॥
तेरा
ज़वाब न देना ज़वाब है लेकिन ।
मेरा
सवाल न करना कोई सवाल नहीं ॥
अब
इस से बढ़ के तेरी शान में कहूँ भी क्या ।
तेरा
कमाल यही है तेरी मिसाल नहीं ॥
हर
ज़ख्म भर चुका है मुहब्बत की चोट का ।
मिटती
नहीं है पीर मगर जग-हँसाई की ॥
बहती
हवाओ तुमसे गुजारिश है बस यही ।
इक
बार फिर सुना दो बँसुरिया कन्हाई की ॥
दिल
वो दरिया है जिसे मौसम भी करता है तबाह ।
किस
तरह इलज़ाम धर दें हम किसी तैराक पर ॥
हम
बख़ूबी जानते हैं बस हमारे जाते ही ।
कैसे-कैसे
गुल खिलेंगे इस बदन की ख़ाक पर ॥
राम
जी का राज था और खूब उजाले थे हुज़ूर ।
उस
समय भी हम मुक़द्दर के हवाले थे हुज़ूर ॥
अब
कोई कुछ भी कहे हम को तो ये मालूम है ।
वो
भी टाइम था यहाँ ढेरों शिवाले थे हुज़ूर ॥
ग़म
की अगवानी में कालीन बिछाया ही नहीं ।
हम
ने दर्दों को दिलो-जाँ से लगाया ही नहीं ॥
रूह
ने ज़िस्म की आँखों से तलाशा जो कुछ ।
सिर्फ़
आँखों में रहा दिल में समाया ही नहीं ॥
अपनी
कोशिश रही लमहों को युगों तक ले जाएँ ।
रेत
पे हमने लक़ीरों को बनाया ही नहीं ॥
एक
बरसात में ढह जाने थे बालू के पहाड़ ।
बादलो
तुम ने मगर ज़ोर लगाया ही नहीं ॥
अगर
ये हो कि हरिक दिल में प्यार भर जाये ।
तो
क़ायनात घड़ी भर में ही सँवर जाये ॥
तपिश
के जुल्म ने “शबनम की उम्र” कम कर दी ।
घटा
घिरे तो गुलिस्ताँ निखर-निखर जाये ॥
अपनी
हद पर ही कमोबेश क़दम रखते हैं ।
हम
समुन्दर हैं किनारों का भरम रखते हैं ॥
ऐ
अँधेरो तुम्हें किस बात का डर है हम से ।
हम
तो सीने में जलन कम से भी कम रखते हैं ॥
कारण
झगड़े का बनी, बस
इतनी सी बात ।
हमने
माँगी थी मदद, उसने
दी ख़ैरात ॥
आँखों
को तकलीफ़ दे, डाल
अक़्ल पर ज़ोर ।
हरदम
ही क्या पूछना, मौसम
के हालात ॥
सभा
में शोर था तहज़ीब को आख़िर हुआ है क्या?
जहाँ
भी जाओ बेशर्मी हमारा मुँह चिढाती
है!!
तभी
सब लड़कियों ने एक सुर में उठ के यूँ बोला।
कि
जो इनसान होते हैं उन्हीं को शर्म आती है॥
हम
किताबों की बात क्या जानें।
ये
हमारी नसों में बहता है॥
हम
कहीं भी रहें ज़माने में।
ब्रज
हमारे ही साथ रहता है॥
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