ख़ुसूसो-ख़ास नगीनों में कोहेनूर हैं आप
दिलोदिमाग़ पै तारी अजब सुरूर हैं आप
किसी के वासते हैं आप मीर जैसे तो
किसी के वासते तुलसी, कबीर, सूर हैं आप
तमाम हाथों को परचम थमाये ग़ज़लों के
विनम्रता को लजाता हुआ ग़ुरूर हैं आप
ज़ुबानी याद हैं बहुतों को आपके अशआर
तो क्या हुआ कि ज़रा क़ायदों से दूर हैं आप
जिसे जो कहना हो कहता रहे, उबलता रहे
हमें तो लगता नहीं है कि बे-शऊर हैं आप
फ़िज़ा के रंग में शामिल है ख़ुशबू-ए-दुष्यंत
ज़हेनसीब, हमारे फ़लक का नूर हैं आप
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