मेरा
हिन्दोसताँ सब से अलग सब से निराला है।
ये
ख़ुशबूओं का गहवर है बहारों का दुशाला है।
अँधेरो
तुम मेरे हिन्दोसताँ का क्या बिगाड़ोगे।
मेरा
हिन्दोसताँ तो ख़ुद उजालों का उजाला है॥
ये
ऋषियों का तपोवन है फ़क़ीरों की विरासत है।
ये
श्रद्धाओं का संगम है दुआओं की इबारत है।
भले
ही हर तरफ़ नफ़रत का कारोबार है लेकिन।
ये
इक ऐसा क़बीला है जिसे सब से मुहब्बत है॥
बुजुर्गों
से वसीयत में मिले संस्कार उगलती है।
समन्वय
से सुशोभित सभ्यता का सार उगलती है।
ज़माने
भर के सारे तोपखाने कुछ नहीं प्यारे।
हमारे
पास ऐसी तोप है जो प्यार उगलती है॥
हमारा
दिल दुखा कर जाने क्या मिलता है लोगों को।
हमें
यों आज़मा कर जाने क्या मिलता है लोगों को।
ये
ऐसा प्रश्न है जिस का कोई उत्तर नहीं मिलता।
तिरंगे
को जला कर जाने क्या मिलता है लोगों को॥
हम
आपस में लड़ेंगे तो तरक़्क़ी हो न पायेगी।
अगर
झगड़े बढेंगे तो तरक़्क़ी हो न पायेगी।
अगर
अब भी नहीं समझे तो फिर किस रोज़ समझेंगे।
सियासत
में पड़ेंगे तो तरक़्क़ी हो न पायेगी॥
जो
मंजिल तक पहुँचते हैं वे रस्ते कैसे देखेंगे।
जो
घर को घर बनाते हैं वे रिश्ते कैसे देखेंगे।
अगर
झूठी शहादत में फ़ना होती रही नस्लें।
तो
फिर हम लोग पोती और पोते कैसे देखेंगे॥
:-
नवीन सी. चतुर्वेदी
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