यक क़ाफ़िया ग़ज़ल - सवेरा हो गया है


कुहासा छँट गया और उजाला हो गया है।
गगनचर चल गगन को सवेरा हो गया है॥

वो भी था एक ज़माना, कि कहता था ज़माना।
चलो यमुना किनारे - सवेरा हो गया है॥

वो रातों की पढ़ाई - और अम्मा की हिदायत।
ज़रा कुछ देर सो ले - सवेरा हो गया है॥

बगल वाली छतों से, कहाँ सुनना मिले अब।
कि अब जाने दे बैरी - सवेरा हो गया है॥

कहीं जाने की जल्दी, कहीं इस बात का ग़म।
शब उतरी भी नहीं और - सवेरा हो गया है॥

न कुकड़ूँ-कूँ हुई और - न ही झरती है शबनम।
तो फिर हम कैसे मानें सवेरा हो गया है॥

न जाने क्यूँ वो औघड़ बिफर उठ्ठा था हम पर।
कहा जैसे ही उस से - सवेरा हो गया है॥

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