ईदी ग़ज़ल


गर चाहते हो सर पे तना आसमाँ रहे।
रब की इबादतों का सलीक़ा जवाँ रहे॥

अब के उठें जो हाथ लबों पर हो ये दुआ।
मालिक तमाम ख़ल्क़ में अम्नो-अमाँ रहे॥

इस के सिवा कुछ और नहीं मेरी आरज़ू।
हर आदमी ख़ुशी से रहे जब - जहाँ रहे॥

जन्नत से नीचे झाँका तो अजदाद ने कहा।
हम-तुम बँधे थे जिन से वे रिश्ते कहाँ रहे॥

आओ कि उस ज़मीन को सजदा करें 'नवीन'
ईश्वर के सारे अंश उतर कर जहाँ रहे॥

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