ब-यादे इरशाद खान सिकन्दर
यूँ
तो वो बिल्कुल पानी के जैसा था
लेकिन
उसपर रंग नहीं चढ़ पाता था
रूह
थिरकने लगती थी सुनकर उसको
बानी में इक ढोल खड़कता रहता था
इक
वीराना और दूजा दीवानापन
ज़ेब
में उसकी इक हीरा इक पन्ना था
नाम
सिकन्दर बिल्कुल जँचता था उसपर
उसने
हर अदबी महफ़िल को लूटा था
रब
जाने अब क्या हो, अब तक, उससे ही
रौशन
उसके घर का कोना कोना था
मूड
बनाने में कुछ वक़्त लगा हमको
क्या
करते तरही मिसरा ही ऐसा था
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