परबत बाग़ बगीचे नदियाँ मेरे चारों ओर
बिखरी पड़ी हैं कितनी ख़ुशियाँ मेरे चारों ओर
इन ही के हाथों में हैं जादू वाली छड़ियाँ
खेलती रहती हैं जो परियाँ मेरे चारों ओर
थकने से पहले ही मुझ में भर देती हैं जोश
टिक-टिक टिक-टिक करती घड़ियाँ मेरे चारों ओर
इनके सपने पूरे हो जायें तो सो पाऊँ
मह्वे-ख़ाब खड़ी हैं सदियाँ मेरे चारों ओर
ब्रज की गलियों में अक्सर यूँ लगता है जैसे
नाच रही हों कृष्ण की सखियाँ मेरे चारों ओर
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