विसालो-हिज़्राँ की नद्दियों की रवानियों में हमारा क्या है

 

विसालो-हिज़्राँ की नद्दियों की रवानियों में हमारा क्या है

सनम हैं तो हम भी हैं वगरना कहानियों में हमारा क्या है

 

जो खंडरों को सजा रही है हम उस उदासी के हैं शहंशा’

महल दुमहलों में रक़्स करती वीरानियों में हमारा क्या है

 

हमारे पैरों के आबले ही ज़माने भर को बताएँगे अब

यहाँ से वाँ तक हरिक सफ़र की निशानियों में हमारा क्या है

 

ये कुछ मनाज़िर जो दिख रहे हैं हम इनके पीछे छुपे हुए हैं

हमें इशारों में ढूँढना तुम मआनियों में हमारा क्या है

 

जहाँ जहाँ दिल दहक रहे हैं ग़ज़ल के गुंचे महक रहे हैं

खिलेंगे हम ना-तवानियों में तवानियों में हमारा क्या है

 

जिसे भी हो शौक़ ताड़ने का वो खोइया में भले ही जाये

हमन तो मर्दों में ही रहेंगे जनानियों में हमारा क्या है

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