याद आता है वो मंज़र आज भी अक्सर हमें

 

याद आता है वो मंज़र आज भी अक्सर हमें

आँखों से आवाज़ देता था कोई पैकर हमें

 

इक ज़रा सा लम्स वो भी था निगाहों का फ़क़त

और गागर में दिखाई दे गया सागर हमें

 

ऐतराज़े-इश्क़ तो है ठीक पर ये तो बताएँ

कौन है वो याद करते हैं जिसे छूकर हमें

 

जश्न कीजै या सियापा कीजियै इस बात पर

दिल में रखकर दिलबरों ने कर दिया बेघर हमें

 

क्या हुआ जो हैं भँवर में काट सकते हैं भँवर

मुन्तज़िर कोई दिखाई दे तो साहिल पर हमें

 

दूसरी या तीसरी या चौथी उल्फ़त भी क़ुबूल

फिर कहीं ये दिल न टूटे बस यही है डर हमें

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