समय है नाम इसका इस समय कुछ भी न बोलेगा
गुबारे फूल जायेंगे तो ज़ालिम पिन चुभो देगा
जगाना काम है उसका ज़मीर अब भी है ड्यूटी पर
मगर तू जाग पायेगा अलारम तो जगा देगा
जगत शतरंज का हर एक मुहरा बस पियादा है
जो ख़ुद को और कुछ समझेगा अपना सर ही पीटेगा
ये बस्ती है फ़क़ीरों की यहाँ का चौधरी मत बन
अगर तू चौधरी बन भी गया तो ले भी क्या लेगा
उन्हें तालीम लेने दे चमन गुलज़ार होने दे
अगर फैलेगी ख़ुशबू तो तेरा घर भी तो महकेगा
किसी भी दौर के पापा हों सारे ये ही कहते हैं
जवानी में नहीं समझा बुढापे में तो समझेगा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें