तजरबा तो तजरबे की तर्ह आता है हुज़ूर

 

तजरबा तो तजरबे की तर्ह आता है हुज़ूर

इल्म जितनी जल्द हो जाये वो अच्छा है हुज़ूर

 

वो मेरा विश्वास है मेरा सहारा है हुज़ूर

मैं भँवर में था मुझे उसने बचाया है हुज़ूर

 

वक़्त आता है कि जब होठों तक आ जाता है ज़ह्र

हर वो बन्दा शिव है जिसका कण्ठ नीला है हुज़ूर

 

ब्रह्म की नैया का खेवनहार कोई है तो जीव

राम को केवट ने गंगा पार उतारा है हुज़ूर

 

सबकी अपनी ज़िन्दगी है सबके अपने-अपने बोझ

सबने अपना-अपना गोवर्धन उठाया है हुज़ूर

 

हो गठीला जिसका तन एकदिन वो बन सकता है मल्ल

हो गठीला जिसका  मन वो बुद्ध बनता है हुज़ूर

 

उसके रूप और रंग के बारे में क्या बोलूँ नवीन

वो तो बस ताज़ा हवा का मस्त झोंका है हुज़ूर

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