हँसता और हँसाता है बेबात कभी रोता ही नहीं

 एक ग़ज़ल मुम्बई शहर के नाम 

हँसता और हँसाता है बेबात कभी रोता ही नहीं

सारी दुनिया सो जाये ये शहर कभी सोता ही नहीं

 

हमने इसको हर आगत का स्वागत करते देखा है

किसी की राहों में काँटे ये शहर कभी बोता ही नहीं

 

स्वागत सबका है लेकिन मेहनतकश ही टिक पाते हैं

बोझ आराम-परस्तों का ये शहर कभी ढोता ही नहीं

 

इसके जैसा जोशीला कोई शहर नहीं देखा फिर भी

जोश में आकर होश अपना ये शहर कभी खोता ही नहीं

 

भले कहर हो कुदरत का या करतूतें हैवानों की

किसी भी घटना से मायूस ये शहर कभी होता ही नहीं

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