पहिचान लीजिये न इशारे बहार के

 

पहिचान लीजिये इशारे बहार के

दहलीज़ पै खड़े हैं नज़ारे बहार के

 

जब-जब भी हमने गेसू सँवारे बहार के

हमको मिले हैं सारे सहारे बहार के

 

तब जा के ख़ुशबूओं ने बसेरा किया यहाँ

जब हम सभी ने सदक़े उतारे बहार के

 

दरिया की धार सीधे समुन्दर की सम्त है

चलते रहो किनारे-किनारे बहार के

 

काँटों पै चल के आयी तो सबको रुलायेगी

दुनिया से कह दो रस्ते बुहारे बहार के

 

तब ज़िक्रे-इश्क़ होता था अब ज़िक्रे-मश्क़ है

सदियों से छप रहे हैं शुमारे बहार के

 

उड़ते हुए हरूफ़, तसावीर और सुर

ये ही तो हैं हुज़ूर इशारे बहार के

 

अल्लाह का करम है कि डूबे नहींनवीन

हम तो डुबो चुके थे शिकारे बहार के

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