देख
ले ज़ालिम तेरे हाथों के तोते उड़ गये
है
सलामत इश्क़ नफ़रत के परख़चे उड़ गये
चैन
से मिलजुल के दाने चुग रहे थे खेत में
इक ज़रा आहट हुई सारे परिन्दे उड़ गये
पेट
जिनके भर चुके थे उनको तो उड़ना ही था
बेशतर
ऐसे थे जो दहशत के मारे उड़ गये
हमने
यह मैली चुनरिया साफ़ तो कर ली मगर
जिनसे
इसकी शान थी वे रंग सारे उड़ गये
ये
ही होता आया है ये ही हुआ फिर एकबार
जैसे
ही शम्मअ बुझी सारे पतंगे उड़ गये
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