किन्हीं हाथों से छीना जा रहा हूँ

 

किन्हीं हाथों से छीना जा रहा हूँ

किन्हीं हाथों में सौंपा जा रहा हूँ

 

मैं ख़ुशबूओं में रहना चाहता था

सो मिट्टी में मिलाया जा रहा हूँ

 

अभी बकरीद में क़ाफ़ी समय है

अभी तो पाला पोसा जा रहा हूँ

 

मैं अपने ज़ख़्म दिखलाऊँ तो कैसे

सलीक़े से घसीटा जा रहा हूँ

 

कभी अस्मत कभी इज़्ज़त बताकर

सरे-बाज़ार उछाला जा रहा हूँ

 

बहुत विश्वास था मुझ पर किसी को

उसी ख़ातिर निभाता जा रहा हूँ

 

मेरी हस्ती मुकम्मल हो रही है

चराग़ों पर उँड़ेला जा रहा हूँ

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