गिनती होती थी जिनकी किरदारों में

 

गिनती होती थी जिनकी किरदारों में

डूब गये पाज़ेबों की झनकारों में

 

एक समय ऐसा भी हमने देखा है

होड़ हुआ करती थी जब ख़ुद्दारों में

 

सुनने थे अशआर तो महफ़िल सजवाते

दरबारी ही आते हैं दरबारों में

 

सुब्ह तलक महफ़िल में रंगत रहती है

मिल जाते हैं ब्याहे भी जब क्वारों में

 

इश्क़ नहीं समझे तो उसका हुस्न फ़ुज़ूल

होगा उसका चर्चा चाँद सितारों में

 

चलते चलते कश्ती काहे रुक गई है

क्या लंगर भी शामिल हैं पतवारों में

 

अपना भारत वृन्दा-वन के जैसा था

बिस किसने बोया तुलसी के क्यारों में

 

मालिक तो बस एक ही है बस एक ही है

हम सबकी गिनती है किरायेदारों में

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