अगर हैवानियत का ये ही मंज़र कू ब कू होगा

 

अगर हैवानियत का ये ही मंज़र कू कू होगा

ज़मीं पर, तय है, कल पानी होगा, बस लहू होगा

 

सुनो हैवानो मेरा प्रश्न है गर दे सको उत्तर

कि जब पानी नहीं होगा तो फिर किससे वुज़ू होगा

 

मुझे मालूम है हमसाये के बाबत जो लिक्खा है

कोई ये भी तो बतलाए अमल कब से शुरू होगा

 

ये जो नफ़रत का राक्षस है इसकी भूख व्यापक है

मुझे खाते ही तय है इसका अगला कौर तू होगा

 

अरे पंचायतों ने कब किसी की पीर समझी है
तू ही बतला दे ये जो ज़ख़्म है, कैसे रफ़ू होगा

 

जो हम इतने भी ज़िद को जाहिलीयत की बहन कह दें
तो ये तय जानिये चरचा हमारा चार-सू होगा

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