वो अपने मम्मी पापा की बड़ी प्यारी सी इक लड़की
मेरे घर को सजाने ब्याह कर जब घर मेरे आयी
तो मैं ने ख़ुद से पूछा इसकी भी कुछ हसरतें होंगी
तमन्नाएं तो मेरी तर्ह इसके दिल में भी होंगी
ये बाबुल के महल को छोड़ कर आयी है मेरे साथ
कुछ इक सपने तो इसने भी सजाये होंगे बेशक ही
मैं मन ही मन बहुत कुछ सोचने में मुब्तिला था जब
तभी शाने पै मेरे आ के रक्खा उसने अपना सर
वो थी ख़ामोश लेकिन उसकी साँसों ने कहा मुझसे
मेरा सपना था ऐसा घर जहाँ जो चाहूँ कर पाऊँ
सजा पाऊँ मैं गमलों को, गुलों में रंग भर पाऊँ
किसी अल्हड़ सी बच्ची की तरह जो चाहूँ वो गाऊँ
नदी में तैरना चाहूँ तो बेखटके उतर पाऊँ
किसी झूले को जब देखूँ तो उस पर झूल भी पाऊँ
किसी दीवार पर चाँद और सितारों को बना पाऊँ
मेरे अन्दर है जो भी क़ाबिलीयत वो दिखा पाऊँ
मुझे तुम क़ैद कर लो ताकि मैं आज़ाद हो पाऊँ
मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी है ऐ मेरे मौला
कि हम दौनों ने दो सहराओं को कर ही दिया आबाद
कि उसके साथ मैं भी क़ैद हो कर हो गया आज़ाद
दुआ करता हूँ उसके सारे ग़म और सारी तक़लीफ़ें
किसी शबनम के क़तरे की तरह ज़्यादा न टिक पायें
मेरे हिस्से की ख़ुशियाँ भी उसे तुह्फ़े में मिल जायें
मेरे हिस्से की ख़ुशियाँ भी उसे तुह्फ़े में मिल जायें
मेरे हिस्से की ख़ुशियाँ भी उसे तुह्फ़े में मिल जायें
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