चहचहाते थे लड़कपन में परिन्दों की तरह


चहचहाते थे लड़कपन में परिन्दों की तरह । 

आजकल राम रटा करते हैं तोतों की तरह ।।

 

अब तो मुश्किल से नज़र भर के कोई तकता है ।

बस टँगे रहते हैं हम चाँद-सितारों की तरह ।।

 

एक झटके में जुदा हो के फ़ना हो गए हैं ।

आबशारों से बिछड़ती हुई बूँदों की तरह ॥

 

छापने वाले भी शिद्दत से नहीं पढ़ते हमें ।

छाप देते हैं उसूलों की किताबों की तरह ॥

 

अच्छे-अच्छों ने कहा कृष्ण की मुरली हैं हम ।

और समझा हमें ढप-ढोल-नगाड़ों की तरह ॥

 

आबशार – झरना

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें