मरमरी बाँहों पे इस ख़ातिर फ़िदा रहता हूँ मैं ।
इन के घेरे में गुलाबों सा खिला रहता हूँ मैं ।।
उन पलों में जब सिमट कर चित्र बन जाती है तू ।
फ्रेम बन कर तेरी हर जानिब जड़ा रहता हूँ मैं ।।
देख ले सब कुछ भुला कर आज़ भी हूँ तेरे साथ ।
तेरी यादों की सलीबों पर टँगा रहता हूँ मैं ।।
तेरी हर हसरत बजा है मेरी हर ख़्वाहिश फ़िजूल।
ये हवस है या मुहब्बत सोचता रहता हूँ मैं।।
Bahut badhiya navin ji. Ati sundar !!
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