उदासियों के नगर में उमंग भर जाओ



दासियों के नगर में उमंग भर जाओ।
कभी तो हमको भी छू कर निहाल कर जाओ।

नहीं बदन को ज़रा सा भी टच नहीं करना।
हमारी रूह से होते हुए गुज़र जाओ।।

ख़ुदा के वासते आँखों से ही बता दो सच।
फिर उसके बाद ज़ुबाँ से भले मुकर जाओ।।

बड़ी कमाल की रुत ज़हनो-दिल पै तारी है।
समेटना है तुम्हें जानेमन बिखर जाओ।।

यों बार-बार लगातार पोज़ बदलो मत।
बना रहा हूँ मैं तस्वीर अब ठहर जाओ।।

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