किसे मालूम है किस नाम पर आवै



किसे मालूम है किस नाम पर आवै।
चँदरमा क्या पता किस बाम पर आवै।।

सयाने लोग जिसको लुत्फ़ कहते हैं।
वु नश्शा क्या पता किस जाम पर आवै।।

मज़ा तो तब है जब वो दिल का सौदाई।
हमारे पहले ही पैगाम पर आवै।।

मुहब्बत हमने की है हम फ़ना होंगे।
ये तुहमत क्यों तुम्हारे नाम पर आवै।।

ग़मों को किस तरह बरख़ास्त कर दें हम।
ख़ुशी का क्या पता कब काम पर आवै।।

अँधेरे में भी पढ़ना लाज़िमी है अब।
उजाला क्या पता किस दाम पर आवै।।

ख़मोशी आ चुकी कबकी उदासी पर । 
उदासी भी तो अब अंजाम पर आवै।।


बाम - छत मुँडेर 

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