लिखने वाले ने भी
क्या-क्या लिक्खा है
प्यासे
की क़िस्मत में सहरा लिक्खा है
सागर जैसी आँखों की क़िस्मत देखो
झरने जैसा पल-पल झरना लिक्खा है
पढ़ने
वाले पढ़कर चुप हो जाते हैं
कोरे
काग़ज़ पर जाने क्या लिक्खा है
जिसको क़ैद नहीं कर सकते पिंजरे में
हमने उसका नाम परिन्दा लिक्खा है
कब
तक मेरा नाम छुपायेगी सब से
हीर!
तेरे चेहरे पर राँझा लिक्खा है
वे जो कूचे-कूचे भटके उनने भी
तेरे ही कूचे को अच्छा लिक्खा है
वे
सब, इश्क़, इबादत है जिनकी ख़ातिर
बस
उनकी क़िस्मत में रोना लिक्खा है
मैं शंकर का शैदाई तू मीरा की
तभी तो क़िस्मत में बिस पीना लिक्खा है
कैसे
जला दूँ उस ख़त को जिसमें तूने
बिछड़
के मुझसे मर मत जाना लिक्खा है
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