अक्सर ठगे गये हैं, छलने
वाले हम॥
बूँदों की मानिन्द टपकते रहते हैं।
फ़व्वारों की तरह उछलने वाले हम॥
धनक हमारे आगे पानी भरती है।
गिरगिट जैसे रंग बदलने वाले हम॥
रोज़ सवेरे उठ कर आँखें मलते हैं।
दुनिया की तस्वीर बदलने वाले हम॥
नकली बरसातें करवा कर दिखला दीं।
अड़ें, तो जम सकते हैं, गलने वाले हम॥
बेच रहे हो पंख तो उड़ के भी दिखलाओ।
बातों से ही नहीं बहलने वाले हम॥
धनक – इन्द्रधनुष, फ़लक - आसमान

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