हम तो समुन्दर हैं बस्ती से किनारा कर के


हम तो समुन्दर हैं बस्ती से किनारा कर के।
कब का सब कुछ त्याग चुके हैं दावा कर के॥

जिन का जलवा है, वे * तो छुप कर बैठी हैं।
डाल और पत्ते झूम रहे हैं - साया कर के॥

तुम्हें देख कर हम क्यों बन्द करेंगे आँखें।
हम तो उजाले ढूँढ रहे थे, अँधेरा कर के॥

बेअदबों के बारे में चरचा क्या करना।
हाथ नहीं लगना कुछ भी, मन मैला कर के॥

अभी तो इक फ़ीसद भी दुनिया बनी नहीं है।
ज़र्रा-ज़र्रा बोल रहा है इशारा कर के॥

हर काहू की ख़िदमत हम से हो न सकेगी।
चाकर हैं हम राधारानी के चाकर के॥



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