बुझे हैं ऐसे कि हो कर भी नईं हुए रौशन


बुझे हैं ऐसे कि हो कर भी नईं हुए रौशन।
न जाने किस के हुनर से चराग़ थे रौशन॥

जो उस का काम है उस ने वही किया साहब।
बुझे हुओं को जला कर बुझा-दिये……. रौशन॥

वो सामने थे मगर आँखों में भरे थे ख़्वाब। 
मिलन की रात भी दीदे 1 न हो सके रौशन॥

किसी के दिल में जो सपने थे, इक इशारे पर।
हमारी पलकों से झर-झर के हो गये रौशन॥

दुआएँ ऐसे ही दी जाती हैं मुहब्बत में।
उदासियों का ठिकाना सदा रहे रौशन॥

हम उस असर 2 के बशर 3 हैं जिसे सितमगर ने।
इनायतों 4 में नवाज़े अनासिरे-रौशन 5॥

कुछ ऐसे झूल रहे हो ‘नवीन’ तुम जैसे।
तुम्हारे शानों 6 पे रक्खे हों क़ाफ़िये रौशन॥



1 आँखें, नयन 2 तत्व, प्रकार
3 मनुष्य 4 कृपाओं 5 उज्ज्वल-तत्व 6 कन्धों

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