सुख चमेली की लड़ी हो जैसे


सुख चमेली की लड़ी हो जैसे।
और ग़म सोनजुही हो जैसे॥

हमने हर पीर समझनी थी यूँ।
गर्द, शबनम को मिली हो जैसे॥

ज़िंदगी इस के सिवा है भी क्या।
धूप, सायों से दबी हो जैसे॥

आरजू है कि सफ़र की तालिब।
नाव, साहिल पे खड़ी हो जैसे॥

सब का कहना है जहाँ और भी हैं।
ये जहाँ बालकनी हो जैसे॥

क्या तसल्ली भरी नींद आई है।
"फिर कोई आस बँधी हो जैसे"॥

हर मुसीबत में उसे याद करूँ।
"आशना एक वही हो जैसे"॥


सफ़र की तालिब - यात्रा पर जाने की इच्छुक

आशना - परिचित

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