होश में थे फिर भी जाने क्या समझ बैठे थे हम

होश में थे फिर भी जाने क्या समझ बैठे थे हम । 
बादलों को नूर का चेहरा समझ बैठे थे हम ।। 

किस के सर पर ठीकरा फोड़ें अब इस भटकाव का । 
दूर की हर चीज़ को आला समझ बैठे थे हम ।। 

हाल ये होना ही था तालीम और तहज़ीब का । 
लग्ज़िशों को रक़्स का हिस्सा समझ बैठे थे हम ।। 

जिस में कुछ अच्छा दिखा उस के क़सीदे पढ़ दिये । 
एरे-गैरों को भी अल्लामा समझ बैठे थे हम ।। 

जो भी कुछ सामान है तन में समाता है ‘नवीन’ । 
जो समंदर हैउसे दरिया समझ बैठे थे हम ।। 

तालीम – शिक्षातहज़ीब – संस्कारलग्जिश – फिसलना / रपटना , रक़्स – नृत्य, क़सीदे – गुणगानअल्लामा – [बड़ा] विद्वान,

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

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