जल
को ज़मीं, ज़मीन
को सरगोशियाँ मिलीं।
तब
जा के इस दयार को ख़ुशफ़हमियाँ मिलीं।।
सूरज
ने चन्द्रमा को उजालों से भर दिया।
हासिल
ये है कि रात को परछाइयाँ मिलीं।।
अब्रों 1
ने ज़र्रे-ज़र्रे 2 को पानी से धो दिया।
बाद
उस के आसमान को बीनाइयाँ 3 मिलीं।।
दैरो-हरम 4
हों वो या बयाबाँ, हरिक
जगह।
शेखी
बघारती हुई अय्याशियाँ मिलीं।।
उड़ते
हुये परिन्द - हमारी 'व्यथा' न पूछ।
दरकार
शाहराह 5 थी - पगडण्डियाँ मिलीं।।
क़िस्मत
को ये मिला तो मशक़्क़त 6 को वो मिला।
इस
को मिला ख़ज़ाना उसे चाभियाँ मिलीं।।
जब-जब
किया है वक़्त से हमने मुक़ाबला।
उस
को बुलन्दियाँ हमें गहराइयाँ मिलीं।।
रहमत
का राग अपनी जगह ठीक है मगर।
जिसने
पसारा हाथ उसे रोटियाँ मिलीं।।
कितने
ही नौज़वान ज़मींदोज़ हो गये।
वो
तन हैं ख़ुशनसीब जिन्हें झुर्रियाँ मिलीं।।
हमने
दिले-फ़क़ीर टटोला तो क्या बताएँ।
ख़ामोशियों
से तंग परेशानियाँ मिलीं।।
तुम
को बता रहा हूँ किसी को बताना मत।
ख़ुद
को किया ख़राब तभी मस्तियाँ मिलीं।।
सौ-फ़ीसदी
मिठास किसी में नहीं 'नवीन'।
जितनी
ज़बाँ हैं सब में कई गालियाँ मिलीं।।
1
बादलों 2 कण-कण 3 दृष्टि, नज़र 4 मन्दिर-मस्जिद 5 राजमार्ग, हाइवे ६ मेहनत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें