गर्मियों की रुत में सावन की घटाएँ ढूँढते हैं




गर्मियों की रुत में सावन की घटाएँ ढूँढते हैं।
नफ़रतों में भी मुहब्बत की फ़ज़ाएँ ढूँढते हैं।।

इस से बढ़कर और क्या होगी मुहब्बत की निशानी।
यार की भूलों में भी अपनी ख़ताएँ ढूँढते हैं।।

क़ारोबारे-गुलसिताँ चलता रहे इस वास्ते हम।
ज़र्रे-ज़र्रे में इनायत की अदाएँ ढूँढते हैं॥

हुस्न वालों की हक़ीक़त से नहीं अनजान हैं हम।
बावुजूद इसके हसीनों में वफ़ाएँ ढूँढते हैं।।

पहले तो बर्बाद कर डाले वीराने और अब हम।
दरमियाने-शहर जंगल और गुफाएँ ढूँढते हैं॥

सारी दुनिया इब्तिदाओं के लिये पागल दिखे है। 
पर तेरे बीमार तो बस इन्तिहाएँ ढूँढते हैं॥

इब्तिदा - शुरुआत, इन्तिहा - अन्त 

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